डेथ एंजेल एंड ए विंटर बॉय ( 2 )
पच्चीस साल बाद……..।
उसी झील के किनारे सुबह के समय एक युवती खड़ी हुई थी। उसके काले लंबे बाल हवा में कलात्मक ढँग से लहरा रहे थे। बीटल जैसी आंखे सूरज की रोशनी में कंचे की तरह चमक रही थी। उसकी आयु बीस वर्ष से अधिक नही थी लेकिन चेहरे के भाव उसके वर्षों के अनुभव को दर्शा रहे थे। आँखों पर गोल फ्रेम का चश्मा लगा हुआ था और गले में एक सुनहरा लॉकेट लटक रहा था जिसके बीचों बीच हरे रंग का एक पारदर्शी पत्थर जड़ा हुआ था।
वह लड़की वहाँ अकेली नहीं थी। उसके साथ उसकी हम उम्र के तीन चार लोग और मौजूद थे जिनका हुलिया ठीक उस लड़की जैसा ही था। साफ पता चल रहा था की वे लोग एक ही टीम के मेंबर थे। उन सभी की शर्ट के उपर बाज का एक सुनहरा लोगो लगा हुआ था जोकि सूरज की रोशनी में काफी चमक रहा था।
"हमारे इतनी दूर आने का कोई फायदा नही हुआ अवनी। यहाँ कुछ भी पैरानॉर्मल नही है।" अवनी नामक उस लड़की से कुछ ही दूरी पर खड़े लड़के ने आस पास की जगह को बारीकी से देखते हुए कहा। उस लड़के का रंग हल्का सांवला था और उसकी आंखे भूरे रंग की थी।
"अब तुम्हे क्या लगता है जय की ये जगह हमे खुद बताएगी की ये पैरानॉर्मल है या नहीं।" अवनी धीरे से पीछे की तरफ पलटी। "नही ना! और पैरानॉर्मल एक्टिविटीज ज्यादातर रात के समय होती है तो हमें रात होने का इंतजार करना चाहिए।" कहकर अवनी पास ही खड़ी पीले रंग की टूरिस्ट बस की ओर बढ़ गई।
उसके पीछे पीछे बाकी लोग भी चले गए सिवाय जय को छोड़कर। जय की नजर आस पास की चीजों का मुआयना करने लगी लेकिन तभी उसकी नजर झाड़ियों के पास खड़े एक साए के ऊपर से होकर गुजरी। जय चौंक पड़ा और उसकी नजरें एक बार फिर से झाड़ियों की तरफ गयी लेकिन तब तक साया गायब हो चुका था। ये सब कुछ इतनी जल्दी हुआ था की जय को ये सब अपना वहम लगने लगा था। इसे सफर की थकान समझकर वह भी बाकी लोगो के पास टूरिस्ट बस के अंदर चला गया। उसके बस के अंदर जाते ही साया एक बार फिर से प्रकट हुआ। इस बार वह उस बस के काफी नजदीक था इतना नजदीक कि उसे बस में बैठे लोग स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे।
बस बाहर से देखने पर छोटी लग रही थी लेकिन अंदर से वह चलता फिरता मिनी हॉटल थी जिसके अंदर उन पाँचों के लिए आराम करने की पर्याप्त जगह थी। बस की दीवारों पर अनेकों नक्शे टंगे हुए थे जिनमे कुछ जगहों को ब्लैक मार्कर से मार्क किया हुआ था। नक्शे दीवार के ऊपर कुछ इस तरह से टंगे हुए थे कि मार्क की हुई लाइने मिलकर एक स्टार का निर्माण कर रही थी। उस स्टार का सेंटर भी एक खास जगह को मार्क कर रहा था।
"जब तक रात होती है हम ऐसा करते है की पास ही के स्टोन म्यूजियम में टहल कर आते है। क्या पता वहाँ से हमे कोई सबूत मिल जाए।" उनमें से एक लड़के ने कहा जोकि रुमाल से चेहरा ढककर आराम से लेटा हुआ था।
"लेकिन हमे प्रोफेसर ने वहाँ जाने से मना किया है। तुम्हे क्या लगता है इस तरह हमारा वहाँ जाना सही रहेगा।" जय के पास बैठे लड़के ने कहा जोकि उम्र में उन सबसे बड़ा था। वह लाल बालों वाला अट्ठाइस साल का एक युवक था जिसकी आंखे लेमन ग्रीन कलर की थी। उसके चेहरे के एक तरफ किसी जानवर के पंजों से बने घाव के निशान थे बावजूद इसके वह काफी गुड लुकिंग था।
"जाने में कोई प्रोब्लम नही है वैसे भी प्रोफेसर को कौन सा पता चलने वाला है।" बस की सीट पर लेटे हुए लड़के ने कहा। उसने अपने चेहरे से रुमाल हटाया और बाकी लोगो के पास जाकर बैठ गया। देखने से वह कोई उन्नीस बीस साल का लड़का लग रहा था जिसकी आँखे गहरे नीले रंग की थी। उसके चेहरे पर दाढ़ी मूछों के बाल हल्के हल्के आने स्टार्ट ही हुए थे इसलिए वह काफी मासूम और अट्रैक्टिव भी था। उसकी आवाज सुनकर बस में बैठे सभी लोगों कि नजर एक साथ उसके ऊपर पड़ी। जब से वे लोग यहां आए थे पहली बार उसे बोलते सुना था क्योंकि रास्ते भर वह गाड़ी में सोते हुए ही आया था औऱ कुछ देर पहले तक भी सो ही रहा था।
उसके आइडिया के बारे में कुछ देर सोचने के बाद बस में बैठे सभी लोग अवनी की तरफ देखने लगे। वही उनकी लीडर थी तो उसकी परमिशन के बिना वैसे भी वे लोग कहीं नहीं जा सकते थे।
"अगर तुम लोग जाना चाहते हो तो ठीक है।" अवनी ने कंधे उचकाकर कहा। "लेकिन इसके बारे में प्रोफेसर को कोई नही बताएगा।"
उसके ऐसा कहते ही सब लोग अपना जरूरी सामान पैक करने लगे। वे सभी प्रोफेसर के गुस्सैल मिजाज को अच्छे से जानते थे इसलिए उनमे से वैसे भी कोई भी प्रोफेसर को कुछ नही बताने वाला था।
***********************
सुबह के तकरीबन दस बजे हुए थे। अवनी बाकी लोगों के साथ द स्टोन म्यूजियम के बाहर खड़ी हुई थी। म्यूजियम काफी आलीशान था और उसके बाहर पत्थरों की कारीगरी के कुछ नमूने रखे हुए थे। म्यूजियम के अंदर जाते ही उन लोगों की नजर सबसे पहले डेथ एंजेल की पत्थर की मूर्ति पर पड़ी जिसे बनाने के लिए अनेकों बहुमूल्य रत्नों का प्रयोग किया गया था। मूर्ति म्यूजियम के हॉल के बीचों बीच रखी हुई थी और लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। म्यूज़ियम के अंदर इतनी बहुमुल्य वस्तुएँ रखी हुई थी बावजूद इसके वहां न कोई सीसीटीव कैमरा नजर आ रहा था और न ही कोई सिक्योरिटी सिस्टम।
अवनी उस जगह को गौर से देखने लगी। उस जगह का निर्माण लाल बलुआ पत्थरों और संगमरमर की सहायता से किया गया था। फर्श का निर्माण कुछ इस तरह से किया गया था कि उस पर चलते समय ऐसा लग रहा था मानो हम काफी ऊंचाई पर हवा के बीचों बीच चल रहे हो। दीवारों के ऊपर कला के अद्भुत नमूने टंगे हुए थे। छत का निर्माण किसी गुम्बद की भांति किया गया था जिसके अंदर एक बेहद ही खूबसूरत और भव्य झूमर टंगा हुआ था। म्यूज़ियम का हर एक कोना देखने लायक था। उन लोगों कि सिद्दत से इच्छा हुई कि इस लम्हे को कैमरे में कैद कर ले लेकिन वहां कैमरा या फिर कोई भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ले जाने की सख्त मनाही थी इसलिए वे लोग वहां की खूबसूरती को अपनी आंखों में कैद करने लगे।
जैसे ही लोगों की भीड़ डेथ एंजेल की मूर्ति के आस पास से छटी अवनी और बाकी लोग पत्थर की मूर्ति के आस पास एकत्रित हो गए। वे लोग उस मूर्ति को बड़े गौर से देखने लगे। तभी अवनी की नजर डेथ एंजेल के हाथों में पकड़ी हुई किताब पर पड़ी जोकि पूरी तरह से काले रंग की थी। किताब के मोटे कवर के बीचों बीच एक छेद बना हुआ था। अवनी गौर से उसे देखने लगी लेकिन तभी अचानक "भड़ाम" लोग चीखते चिल्लाते इधर उधर भागने लगे। चारों तरफ लाशों का ढेर लगा हुआ था। म्यूजियम की बिल्डिंग आधी ढह चुकी थी।
"क्या हुआ अवनी।" जय ने अवनी को झकझोरते हुए कहा। "कुछ नही।" अवनी हांफते हुए बोली मानो वह मिलों दूर से भागते हुए आई हो।
"क्या देखा तुमने।" अब तक नीली आंखों वाला विवान भी वहां पर आ चुका था।
"कुछ अजीब बहुत ही अजीब लेकिन वो क्या था कुछ समझ नहीं आया।" अवनी अब तक काफी नॉर्मल हो चुकी थी।
"ठीक है अगर तुम अब बेहतर महसूस कर रही हो तो हम रेड स्टोन देखने चलते है।" विवान अदिति को पानी की बॉटल देते हुए बोला।
"लेकिन ये रेड स्टोन क्या बला है?" जय ने आश्चर्य से पूछा।
"जब तुम देखोगे तो तुम्हे खुद ब खुद पता चल जायेगा।" कहकर विवान हॉल के अंतिम छोर पर बनी लिफ्ट की तरफ जाने लगा। बाकी लोग भी उसके पीछे पीछे चल दिए क्योंकि विवान के अलावा बाकी सब लोग वहां पहली बार ही आए थे। लिफ्ट इतनी बड़ी थी की उसमे एक साथ दस लोग आराम से खड़े हो सकते थे जबकि वे तो सिर्फ पांच ही लोग थे।
विवान ने लिफ्ट के अंदर जाकर नीले रंग का एक बटन दबाया जिसके ऊपर अजीबो गरीब भाषा में कुछ लिखा हुआ था। बटन दबाते ही उन लोगों को ऊपर की तरफ एक खिंचाव महसूस हुआ और लिफ्ट बड़ी तेजी से नीचे की तरफ जाने लगी। कुछ ही मिनटों बाद लिफ्ट रुक गई और उसका दरवाजा अपने आप ही खुल गया।
जब वे लोग लिफ्ट से बाहर निकले तो उन्होंने खुद को एक अलग ही दुनियाँ में पाया। चारों तरफ सैंकड़ों की संख्या में मजदूर फैले हुए थे जोकि खदानों से बड़े बड़े चमकीले पत्थरों को निकालकर बाहर ला रहे थे। उन सभी मजदूरों का शरीर मिट्टी से सना हुआ था।
विवान उन सभी को लेकर एक खास दिशा में आगे बढ़ने लगा। कुछ देर तक आगे बढ़ने के बाद वे लोग एक संकरी गली में पहुंच गए। गली इतनी संकरी थी कि उसमें से एक बारी में केवल एक ही व्यक्ति अंदर जा सकता था। गली को पार कर जब वे लोग बाहर निकले तो एक मध्यम आकार के कमरे में पहुंच गए जोकि अंधेरे में लगभग डूबा हुआ था। कमरे के बीचों बीच पत्थर का एक प्याला पत्थर की ही मेज पर रखा हुआ था। उस प्याले के अंदर से लाल रंग की रोशनी बाहर निकल रही थी।
उस रहस्यमय जगह को देखकर सब लोगों के मुंह आश्चर्य से खुले के खुले रह गए। उन्हे ऐसा लग रहा था मानों वे किसी तिलिस्मी दुनियां मे पहुंच गए हो। वे लोग आगे जाने से डर रहे थे लेकिन विवान, वो तो ठीक उस कुंड के पास खड़ा था जिससे वो प्रकाश निकल रहा था। विवान को सही सलामत देख बाकी लोग भी कमरे के अंदर चले गए। कमरे के बाहर का तापमान बिलकुल सामान्य था लेकिन कमरे के अंदर एक अजीब सी ठंड फैली हुई थी।
अवनी और बाकी लोगों ने कोतुहल वश उस प्याले में झांककर देखा तो पाया कि उसके अंदर एक साफ और श्यान पारदर्शी द्रव भरा हुआ था जिसके अंदर एक बेहद खूबसूरत सा दिखने वाला लाल रंग का पत्थर तलहटी में पड़ा हुआ था।
अवनी ने उसे छूने की कोशिश की तो विवान ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।
अवनी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा तो वह धीरे से बोला :– "इस पत्थर को सिर्फ वही छू सकता है जो किसी से सिद्दत से प्यार और नफरत दोनो करता हो।"
"ऐसा भी भला कहीं होता है।" रिद्धिमा ने आश्चर्य से पूछा। वह एक सामान्य सी दिखने वाली लड़की थी जोकि शायद ही कभी बोलती थी। उसके बाल घुटनों तक लंबे थे जोकि पोनी टेल की शक्ल में बंधे हुए थे। वहां खड़े बाकी लोग भी उससे सहमत नजर आ रहे थे। विवान कि बातें उन्हें किसी फैरीटेल स्टोरी जैसी लग रही थी।
"क्या पता लेकिन ऐसा ही है। अगर उस शख्स के अतिरिक्त किसी और ने इसे छूने की कोशिश की तो वह हमेशा हमेशा के लिए एक पत्थर बनकर रह जायेगा।" विवान ने कहा। उसकी आवाज प्रत्येक शब्द के साथ रहस्यमय होती जा रही थी।
अवनी की नजर जैसे ही पत्थर के केंद्र पर पड़ी तभी उसकी आंखो के सामने एक शख्स का चेहरा दिखाई देने लगा जोकि काफी धुंधला था। लग रहा था अवनी उसे गीले कांच के पार से देख रही हो। इससे पहले की किसी को भनक भी लगती अवनी ने खुद को तुरंत संभाल भी लिया। उसे अब इन सबकी आदत पड़ चुकी थी।
"तब तो मै इसे हाथ लगाऊँगा।" कहकर जय का हाथ उस प्याले कि तरफ बढ़ा। इससे पहले कि विवान उसे रोक पाता, उसका हाथ पत्थर के प्याले के अंदर जा चुका था। विवान ने अपनी आँखें कसकर बंद कर ली। उसे किसी अनहोनी की आशंका थी लेकिन अनहोनी तो तब होती न जब जय उस पत्थर को छू पाता। पत्थर जिस द्रव में डूबा हुआ था वह काँच कि भांति एक अतिशीतित द्रव था। विवान ने राहत की सांस ली और उसकी ऐसी हालत देखकर बाकी लोग जोर जोर से हंसने लगे। उन लोगों को इस तरह खुद पर हँसता देख विवान झेंप गया और दनदनाते हुए कमरे से बाहर चला गया। बाकी लोग भी उसके पीछे पीछे कमरे से बाहर चले गए। काफी देर तो उन्हें विवान को मनाने में ही लग गयी थी। विवान तो वहां से तुरंत जाने की बात कर रहा था लेकिन जब बाकी लोगों ने उसे किसी भी चीज को हाथ न लगाने का प्रॉमिस किया तब जाकर वह वहां रुकने को तैयार हुआ।
वे लोग एक बार फिर से उसी लिफ्ट में खड़े हुए थे और इस बार वे नीचे की बजाय ऊपर की तरफ जा रहे थे। उन्हे लिफ्ट में खड़े हुए तीस सेकंड भी नही हुए थे की लिफ्ट अपने आप रुक गई। वे लोग लिफ्ट से बाहर निकले तो उन्होंने खुद को एक छोटे से कमरे के अंदर पाया जोकि पूरी तरह से खाली था। कमरे मे देखने लायक कुछ भी नही था लेकिन उसका आकार किसी अंडे की तरह था जिसके बीचों बीच कांच का पारदर्शी फर्श बना हुआ था। इस बार सिर्फ और सिर्फ विवान कमरे के अंदर गया। उसके कहने पर बाकी लोग लिफ्ट के अंदर ही खड़े थे। तकरीबन एक मिनट तक कमरे के अंदर रहने के बाद विवान कमरे से बाहर आया और बाकी लोगों के पास लिफ्ट के अंदर चला गया।
"उस कमरे में ऐसा क्या था जो तुमने हमे अंदर नही आने दिया।" जय ने भोहें चढ़ाते हुए पूछा।
"इस कमरे में सिर्फ म्यूजियम के मेंबर ही जा सकते है और उनमें से भी केवल वे लोग जो इसकी समिति से जुड़े हो।" विवान ने कहा।
इससे पहले की जय कुछ और पूछ पाता लिफ्ट रुक गई और वे लोग एक बार फिर से मेन हॉल में पहुंच गए। इसके बाद वे लोग बारी बारी से ब्लू स्टोन, ड्रैगन स्टोन और फायर स्टोन को देखने गए जोकि म्यूजियम के थर्ड फ्लोर पर रखे हुए थे। म्यूजियम किसी भूल भुलैया से कम नही था। उन लोगों ने म्यूजियम के रास्ते याद करने की काफी कोशिश की लेकिन रास्ते इतने टेढ़े मेढे थे की वे बार बार भूल जाते थे की वे आए किस दिशा से थे। वो तो अच्छा था की विवान को सारे रास्ते याद थे लेकिन कैसे ये ख्याल उनमें से किसी के दिमाग में नही आया।
म्यूजियम के अंदर घूमते घूमते कब शाम हो गई उन लोगों को पता भी नही चला। इस समय वे लोग एक बार फिर से डेथ एंजेल की मूर्ति के पास खड़े हुए थे। अवनी ने एंजेल की लाल माणिक से बनी आंखो में गौर से देखा तो उसे महसूस हुआ की वे उसे ही घूर रही थी। ये अपने आप में ही एक हास्यास्पद विचार था इसलिए अवनी ने इस पर कोई ध्यान नही दिया। उसकी नजर डेथ बुक पर पड़ी तो उसे वो छेद नजर नहीं आया जो पिछली बार नजर आया था। सब कुछ बड़ा ही अजीब था जिसे अवनी समझ नहीं पा रही थी।
To be continued……………..।
shweta soni
23-Jul-2022 05:06 PM
Nice 👍
Reply
Reyaan
09-Jun-2022 05:44 PM
Nice 👍🏼
Reply
Punam verma
08-Jun-2022 01:38 PM
Nice
Reply